श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 20: ब्रह्माण्ड रचना का विश्लेषण  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  5.20.28 
 
 
अन्त:प्रविश्य भूतानि यो बिभर्त्यात्मकेतुभि: ।
अन्तर्यामीश्वर: साक्षात्पातु नो यद्वशे स्फुटम् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  [शाकद्वीप के निवासी वायु रूप में श्रीभगवान् की उपासना निम्नलिखित शब्दों से करते हैं] हे परम पुरुष, आप शरीर के भीतर परमात्मा रूप में स्थित हैं और प्राण वायु जैसी विभिन्न वायुओं की क्रियाओं को संचालित करके सभी प्राणियों का पालन-पोषण करते हैं। हे प्रभु, हे परमात्मा, हे विराट जगत के नियामक, आप हमारी सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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