श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  5.19.9 
भारतेऽपि वर्षे भगवान्नरनारायणाख्य आकल्पान्तमुपचितधर्मज्ञानवैराग्यैश्वर्योपशमोपरमात्मोपलम्भनमनुग्रहायात्मवतामनुकम्पया तपोऽव्यक्तगतिश्चरति ॥ ९ ॥
 
 
अनुवाद
श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा - श्री भगवान की महिमा का वर्णन करना असंभव है। उन्होंने अपने भक्तों पर कृपा करके, उन्हें धर्म, ज्ञान, त्याग, अध्यात्म, इंद्रिय-नियंत्रण और अहंकार से मुक्ति की शिक्षा देने के लिए भारतवर्ष की भूमि में बदरिकाश्रम नामक स्थान पर नर-नारायण के रूप में प्रकट हुए हैं। वे आत्म-साक्षात्कार की संपत्ति से परिपूर्ण हैं और कल्प के अंत तक तप में लीन रहेंगे। यही आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया है।
 
श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा - श्री भगवान की महिमा का वर्णन करना असंभव है। उन्होंने अपने भक्तों पर कृपा करके, उन्हें धर्म, ज्ञान, त्याग, अध्यात्म, इंद्रिय-नियंत्रण और अहंकार से मुक्ति की शिक्षा देने के लिए भारतवर्ष की भूमि में बदरिकाश्रम नामक स्थान पर नर-नारायण के रूप में प्रकट हुए हैं। वे आत्म-साक्षात्कार की संपत्ति से परिपूर्ण हैं और कल्प के अंत तक तप में लीन रहेंगे। यही आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया है।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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