श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  5.19.28 
यद्यत्र न: स्वर्गसुखावशेषितं
स्विष्टस्य सूक्तस्य कृतस्य शोभनम् ।
तेनाजनाभे स्मृतिमज्जन्म न: स्याद्
वर्षे हरिर्यद्भ‍जतां शं तनोति ॥ २८ ॥
 
 
अनुवाद
हम यज्ञ, पुण्य कर्म, अनुष्ठान और वेदाध्ययन करते रहने के कारण स्वर्ग-लोक में वास कर रहे हैं, परन्तु एक दिन ऐसा आएगा जब हमारा भी अन्त हो जाएगा। हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि जब हम इस लोक से विदा लें, तो यदि थोड़ा भी पुण्य हमारे पास शेष रहे, तो हम पुनः भारतवर्ष में मानव रूप में जन्म लें, जहाँ हम प्रभु के चरणकमलों का स्मरण कर सकें। भगवान् इतने दयालु हैं कि वे स्वयं भारतवर्ष में आते हैं और यहाँ के निवासियों को सौभाग्य प्रदान करते हैं।
 
हम यज्ञ, पुण्य कर्म, अनुष्ठान और वेदाध्ययन करते रहने के कारण स्वर्ग-लोक में वास कर रहे हैं, परन्तु एक दिन ऐसा आएगा जब हमारा भी अन्त हो जाएगा। हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि जब हम इस लोक से विदा लें, तो यदि थोड़ा भी पुण्य हमारे पास शेष रहे, तो हम पुनः भारतवर्ष में मानव रूप में जन्म लें, जहाँ हम प्रभु के चरणकमलों का स्मरण कर सकें। भगवान् इतने दयालु हैं कि वे स्वयं भारतवर्ष में आते हैं और यहाँ के निवासियों को सौभाग्य प्रदान करते हैं।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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