श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा » अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन » श्लोक 27 |
|
| | श्लोक 5.19.27  | सत्यं दिशत्यर्थितमर्थितो नृणां
नैवार्थदो यत्पुनरर्थिता यत: ।
स्वयं विधत्ते भजतामनिच्छता-
मिच्छापिधानं निजपादपल्लवम् ॥ २७ ॥ | | | अनुवाद | पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् उस भक्त की भौतिक इच्छाएँ पूर्ण कर देते हैं, जो सकाम भाव से उनके पास जाता है, किन्तु वे भक्त को ऐसा वर नहीं देते जिससे वह बार-बार वर मांगता रहे। फिर भी, भगवान् प्रसन्नतापूर्वक ऐसे भक्त को अपने चरणकमलों में शरण देते हैं, भले ही वह इसकी आकांक्षा न करे और शरणागत होने पर उसकी समस्त इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। यह श्रीभगवान् की विशेष अनुकम्पा है। | | पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् उस भक्त की भौतिक इच्छाएँ पूर्ण कर देते हैं, जो सकाम भाव से उनके पास जाता है, किन्तु वे भक्त को ऐसा वर नहीं देते जिससे वह बार-बार वर मांगता रहे। फिर भी, भगवान् प्रसन्नतापूर्वक ऐसे भक्त को अपने चरणकमलों में शरण देते हैं, भले ही वह इसकी आकांक्षा न करे और शरणागत होने पर उसकी समस्त इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। यह श्रीभगवान् की विशेष अनुकम्पा है। |
| ✨ ai-generated | |
|
|