श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा » अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन » श्लोक 26 |
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| | श्लोक 5.19.26  | यै: श्रद्धया बर्हिषि भागशो हवि-
र्निरुप्तमिष्टं विधिमन्त्रवस्तुत: ।
एक: पृथङ्नामभिराहुतो मुदा
गृह्णाति पूर्ण: स्वयमाशिषां प्रभु: ॥ २६ ॥ | | | अनुवाद | भारतवर्ष में परमेश्वर द्वारा नियुक्त विभिन्न अधिकारी स्वरूप देवताओं—यथा इन्द्र, चन्द्र तथा सूर्य—के अनेक उपासक हैं, जिन सबकी अलग-अलग रीति से पूजा की जाती है। उपासक इन देवताओं को पूरे ब्रह्म का अंश मानकर अपनी आहुतियाँ अर्पित करते हैं, इसलिए श्रीभगवान् इन अर्पित वस्तुओं को स्वीकारते हैं और क्रमशः उपासकों की इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा करके उन्हें शुद्ध भक्ति पद तक ऊपर उठा देते हैं। चूँकि श्रीभगवान् पूर्ण हैं, इसलिए वे उपासकों को अभीष्ट वर देते हैं, चाहे उपासक उनके दिव्य शरीर के किसी एक अंग की पूजा क्यों न करते हों। | | भारतवर्ष में परमेश्वर द्वारा नियुक्त विभिन्न अधिकारी स्वरूप देवताओं—यथा इन्द्र, चन्द्र तथा सूर्य—के अनेक उपासक हैं, जिन सबकी अलग-अलग रीति से पूजा की जाती है। उपासक इन देवताओं को पूरे ब्रह्म का अंश मानकर अपनी आहुतियाँ अर्पित करते हैं, इसलिए श्रीभगवान् इन अर्पित वस्तुओं को स्वीकारते हैं और क्रमशः उपासकों की इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा करके उन्हें शुद्ध भक्ति पद तक ऊपर उठा देते हैं। चूँकि श्रीभगवान् पूर्ण हैं, इसलिए वे उपासकों को अभीष्ट वर देते हैं, चाहे उपासक उनके दिव्य शरीर के किसी एक अंग की पूजा क्यों न करते हों। |
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