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श्लोक 5.19.24  |
न यत्र वैकुण्ठकथासुधापगा
न साधवो भागवतास्तदाश्रया: ।
न यत्र यज्ञेशमखा महोत्सवा:
सुरेशलोकोऽपि न वै स सेव्यताम् ॥ २४ ॥ |
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अनुवाद |
जहाँ श्री भगवान की कथा रूपी शुद्ध गंगा बहती नहीं है और जहाँ धर्म रूपी नदी के किनारे सेवक नहीं रहते हैं या जहाँ संकीर्तन-यज्ञ का उत्सव नहीं मनाया जाता, वहाँ बुद्धिमान पुरुष की रुचि नहीं रहती है। (क्योंकि इस युग में विशेष रूप से संकीर्तन-यज्ञ की अनुशंसा की गई है)। |
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जहाँ श्री भगवान की कथा रूपी शुद्ध गंगा बहती नहीं है और जहाँ धर्म रूपी नदी के किनारे सेवक नहीं रहते हैं या जहाँ संकीर्तन-यज्ञ का उत्सव नहीं मनाया जाता, वहाँ बुद्धिमान पुरुष की रुचि नहीं रहती है। (क्योंकि इस युग में विशेष रूप से संकीर्तन-यज्ञ की अनुशंसा की गई है)। |
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