श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  5.19.22 
किं दुष्करैर्न: क्रतुभिस्तपोव्रतै-
र्दानादिभिर्वा द्युजयेन फल्गुना ।
न यत्र नारायणपादपङ्कज-
स्मृति: प्रमुष्टातिशयेन्द्रियोत्सवात् ॥ २२ ॥
 
 
अनुवाद
देवता बोले- वैदिक यज्ञों के करने, तप करने, व्रत रखने और दान देने जैसे कठिन कार्यों के करने के बाद ही हमें स्वर्ग में निवास करने का यह पद प्राप्त हुआ है। परन्तु हमारी इस सफलता का क्या महत्व है? यहाँ हम निश्चित रूप से भौतिक इन्द्रिय तृप्ति में व्यस्त रहकर भगवान नारायण के चरणकमलों का स्मरण तक नहीं कर पाते। अत्यधिक इंद्रिय तृप्ति के कारण हम उनके चरणकमलों को लगभग भूल ही चुके हैं।
 
देवता बोले- वैदिक यज्ञों के करने, तप करने, व्रत रखने और दान देने जैसे कठिन कार्यों के करने के बाद ही हमें स्वर्ग में निवास करने का यह पद प्राप्त हुआ है। परन्तु हमारी इस सफलता का क्या महत्व है? यहाँ हम निश्चित रूप से भौतिक इन्द्रिय तृप्ति में व्यस्त रहकर भगवान नारायण के चरणकमलों का स्मरण तक नहीं कर पाते। अत्यधिक इंद्रिय तृप्ति के कारण हम उनके चरणकमलों को लगभग भूल ही चुके हैं।
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.