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श्लोक 5.19.21  |
एतदेव हि देवा गायन्ति—
अहो अमीषां किमकारि शोभनं
प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरि: ।
यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे
मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि न: ॥ २१ ॥ |
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अनुवाद |
चूँकि आत्मसाक्षात्कार के लिए इन्सानी जीवन सर्वश्रेष्ठ स्थान है, इसलिए स्वर्गलोक के सभी देवता ऐसा कहते हैं—इन मनुष्यों का भारतवर्ष में जन्म लेना कितना विस्मयकारी है। उन्होंने पहले जन्म में अवश्य ही तप किया होगा या स्वयं श्रीभगवान् ही उनसे प्रसन्न हुए होंगे। अन्यथा वे ऐसे विभिन्न तरीकों से भक्ति कैसे कर सकते हैं? हम देवता सिर्फ भारतवर्ष में इन्सान का जन्म लेकर भक्ति करने की लालसा कर सकते हैं, मगर ये मनुष्य पहले से ही भक्ति में लगे हुए हैं। |
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चूँकि आत्मसाक्षात्कार के लिए इन्सानी जीवन सर्वश्रेष्ठ स्थान है, इसलिए स्वर्गलोक के सभी देवता ऐसा कहते हैं—इन मनुष्यों का भारतवर्ष में जन्म लेना कितना विस्मयकारी है। उन्होंने पहले जन्म में अवश्य ही तप किया होगा या स्वयं श्रीभगवान् ही उनसे प्रसन्न हुए होंगे। अन्यथा वे ऐसे विभिन्न तरीकों से भक्ति कैसे कर सकते हैं? हम देवता सिर्फ भारतवर्ष में इन्सान का जन्म लेकर भक्ति करने की लालसा कर सकते हैं, मगर ये मनुष्य पहले से ही भक्ति में लगे हुए हैं। |
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