श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा » अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन » श्लोक 20 |
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| | श्लोक 5.19.20  | योऽसौ भगवति सर्वभूतात्मन्यनात्म्येऽनिरुक्तेऽनिलयने परमात्मनि वासुदेवेऽनन्यनिमित्तभक्तियोगलक्षणो नानागतिनिमित्ताविद्याग्रन्थिरन्धनद्वारेण यदा हि महापुरुषपुरुषप्रसङ्ग: ॥ २० ॥ | | | अनुवाद | अनेक जन्मों के पश्चात्, अपने पुण्यकर्मों के फलित होने पर मनुष्य को शुद्ध भक्तों की संगति मिलती है। तभी अज्ञानता के बंधन की ग्रंथि, जो नाना प्रकार के कामनाओं से बँधी हुई है, कट पाती है। भक्तों की संगति करने से धीरे-धीरे ऐसे श्री वासुदेव की सेवा में मन लगने लगता है, जो दिव्य हैं, भौतिक बंधनों से मुक्त हैं, मन और वाणी से परे हैं तथा परम स्वतंत्र हैं। यही भक्तियोग अर्थात् भगवान वासुदेव की भक्ति ही मुक्ति का वास्तविक मार्ग है। | | अनेक जन्मों के पश्चात्, अपने पुण्यकर्मों के फलित होने पर मनुष्य को शुद्ध भक्तों की संगति मिलती है। तभी अज्ञानता के बंधन की ग्रंथि, जो नाना प्रकार के कामनाओं से बँधी हुई है, कट पाती है। भक्तों की संगति करने से धीरे-धीरे ऐसे श्री वासुदेव की सेवा में मन लगने लगता है, जो दिव्य हैं, भौतिक बंधनों से मुक्त हैं, मन और वाणी से परे हैं तथा परम स्वतंत्र हैं। यही भक्तियोग अर्थात् भगवान वासुदेव की भक्ति ही मुक्ति का वास्तविक मार्ग है। |
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