श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 17-18
 
 
श्लोक  5.19.17-18 
 
 
एतासामपो भारत्य: प्रजा नामभिरेव पुनन्तीनामात्मना चोपस्पृशन्ति ॥ १७ ॥ चन्द्रवसा ताम्रपर्णी अवटोदा कृतमाला वैहायसी कावेरी वेणी पयस्विनी शर्करावर्ता तुङ्गभद्रा कृष्णा वेण्या भीमरथी गोदावरी निर्विन्ध्या पयोष्णी तापी रेवा सुरसा नर्मदा चर्मण्वती सिन्धुरन्ध: शोणश्च नदौ महानदी वेदस्मृतिऋर्षिकुल्या त्रिसामा कौशिकी मन्दाकिनी यमुना सरस्वती द‍ृषद्वती गोमती सरयू रोधस्वती सप्तवती सुषोमा शतद्रूश्चन्द्रभागा मरुद्‍वृधा वितस्ता असिक्नी विश्‍वेति महानद्य: ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  भारतवर्ष की नदियों में से दो नदियाँ—ब्रह्मपुत्र और शोण—मुख्य नदियाँ कहलाती हैं। अन्य प्रमुख बड़ी नदियाँ इस प्रकार हैं—चंद्रवसा, ताम्रपर्णी, अवटोदा, कृतमाला, वैहायसी, कावेरी, वेणी, पयस्विनी, शर्करावर्ता, तुंगभद्रा, कृष्णावेण्या, भीमरथी, गोदावरी, निर्विंध्या, पयोष्णी, तापी, रेवा, सुरसा, नर्मदा, चर्मणवती, महानदी, वेदस्मृति, ऋषिकुल्या, त्रिसामा, कौशिकी, मन्दाकिनी, यमुना, सरस्वती, दृषद्वती, गोमती, सरयू, रोधस्वती, सप्तवती, सुषोमा, शतद्रू, चंद्रभागा, मरुद्वृधा, वितस्ता, असिक्नी और विश्वा। भारतवर्ष के निवासी इन नदियों का स्मरण करके पवित्र रहते हैं। कई बार वे इन नदियों के नाम मंत्र की तरह जपते हैं और कई बार जाकर इन्हें छूते हैं और इनमें स्नान भी करते हैं। इस तरह भारतवर्ष के लोग पवित्र बने रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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