श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  5.19.16 
भारतेऽप्यस्मिन्वर्षे सरिच्छैला: सन्ति बहवो मलयो मङ्गलप्रस्थो मैनाकस्त्रिकूट ऋषभ: कूटक: कोल्लक: सह्यो देवगिरिऋर्ष्यमूक: श्रीशैलो वेङ्कटो महेन्द्रो वारिधारो विन्ध्य: शुक्तिमानृक्षगिरि: पारियात्रो द्रोणश्चित्रकूटो गोवर्धनो रैवतक: ककुभो नीलो गोकामुख इन्द्रकील: कामगिरिरिति चान्ये च शतसहस्रश: शैलास्तेषां नितम्बप्रभवा नदा नद्यश्च सन्त्यसङ्ख्याता: ॥ १६ ॥
 
 
अनुवाद
इलावृत-वर्ष की तरह, भारतवर्ष में भी अनेकों पर्वत और नदियाँ हैं। कुछ पर्वतों के नाम हैं - मलय, मंगलप्रस्थ, मैनाक, त्रिकूट, ऋषभ, कूटक, कोल्लक, सह्य, देवगिरि, ऋष्यमूक, श्रीशैल, वेंकट, महेन्द्र, वारिधारा, विन्ध्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, पारियात्र, द्रोण, चित्रकूट, गोवर्धन, ऐवतक, ककुभ, नील, गोकामुख, इन्द्रकील और कामगिरि। इसके अलावा कई पहाड़ियाँ भी हैं और इनकी ढलानों से बड़ी और छोटी नदियाँ बहती हैं।
 
इलावृत-वर्ष की तरह, भारतवर्ष में भी अनेकों पर्वत और नदियाँ हैं। कुछ पर्वतों के नाम हैं - मलय, मंगलप्रस्थ, मैनाक, त्रिकूट, ऋषभ, कूटक, कोल्लक, सह्य, देवगिरि, ऋष्यमूक, श्रीशैल, वेंकट, महेन्द्र, वारिधारा, विन्ध्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, पारियात्र, द्रोण, चित्रकूट, गोवर्धन, ऐवतक, ककुभ, नील, गोकामुख, इन्द्रकील और कामगिरि। इसके अलावा कई पहाड़ियाँ भी हैं और इनकी ढलानों से बड़ी और छोटी नदियाँ बहती हैं।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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