श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा » अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन » श्लोक 15 |
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| | श्लोक 5.19.15  | तन्न: प्रभो त्वं कुकलेवरार्पितां
त्वन्माययाहंममतामधोक्षज ।
भिन्द्याम येनाशु वयं सुदुर्भिदां
विधेहि योगं त्वयि न: स्वभावमिति ॥ १५ ॥ | | | अनुवाद | इसलिए हे भगवान, हे अदृश्य, कृपया हमें भक्ति-योग साधना की शक्ति प्रदान करके कृपा करें जिससे हम अपना अस्थिर मन वश में करके आप में लगा सकें। हम सभी आपकी माया से प्रभावित हैं, अतः हम मल-मूत्र से परिपूर्ण शरीर और इससे संबंधित प्रत्येक वस्तु के प्रति अत्यधिक आसक्त हैं। इस आसक्ति को छोड़ने का एकमात्र उपाय भक्ति है, अतः आप हमें यह वरदान दें। | | इसलिए हे भगवान, हे अदृश्य, कृपया हमें भक्ति-योग साधना की शक्ति प्रदान करके कृपा करें जिससे हम अपना अस्थिर मन वश में करके आप में लगा सकें। हम सभी आपकी माया से प्रभावित हैं, अतः हम मल-मूत्र से परिपूर्ण शरीर और इससे संबंधित प्रत्येक वस्तु के प्रति अत्यधिक आसक्त हैं। इस आसक्ति को छोड़ने का एकमात्र उपाय भक्ति है, अतः आप हमें यह वरदान दें। |
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