श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  5.19.13 
इदं हि योगेश्वर योगनैपुणं
हिरण्यगर्भो भगवाञ्जगाद यत् ।
यदन्तकाले त्वयि निर्गुणे मनो
भक्त्या दधीतोज्झितदुष्कलेवर: ॥ १३ ॥
 
 
अनुवाद
हे योगेश्वर, आत्माराम भगवान् ब्रह्मा (हिरण्यगर्भ) ने योगक्रिया के विषय में जो कुछ कहा है यह उसकी व्याख्या है। मृत्यु के समय सभी योगी आपके चरण-कमलों में अपना मन स्थापित करके अपने भौतिक शरीर को त्याग देते हैं। यह योग सिद्धि है।
 
हे योगेश्वर, आत्माराम भगवान् ब्रह्मा (हिरण्यगर्भ) ने योगक्रिया के विषय में जो कुछ कहा है यह उसकी व्याख्या है। मृत्यु के समय सभी योगी आपके चरण-कमलों में अपना मन स्थापित करके अपने भौतिक शरीर को त्याग देते हैं। यह योग सिद्धि है।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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