श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 19: जम्बूद्वीप का वर्णन  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  5.19.10 
तं भगवान्नारदो वर्णाश्रमवतीभिर्भारतीभि: प्रजाभिर्भगवत्प्रोक्ताभ्यां साङ्ख्ययोगाभ्यां भगवदनुभावोपवर्णनं सावर्णेरुपदेक्ष्यमाण: परमभक्तिभावेनोपसरति इदं चाभिगृणाति ॥ १० ॥
 
 
अनुवाद
नारद पंचरात्र नामक अपने ग्रंथ में भगवान नारद ने विस्तारपूर्वक वर्णन किया है कि किस प्रकार ज्ञान और योग अभ्यास के माध्यम से जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य, भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने भगवान की महिमा का भी वर्णन किया है। महर्षि नारद ने इस दिव्य साहित्य का उपदेश सावर्णि मनु को प्रदान किया, ताकि वह भारतवर्ष के उन निवासियों को भगवान की भक्ति प्राप्त करने की शिक्षा दे सकें जो दृढ़ता से वर्णाश्रम धर्म के नियमों का पालन करते हैं। इस प्रकार, नारद मुनि भारतवर्ष के अन्य निवासियों के साथ मिलकर सदैव नर-नारायण की सेवा करते हैं और निम्नलिखित मंत्र का जप करते हैं।
 
नारद पंचरात्र नामक अपने ग्रंथ में भगवान नारद ने विस्तारपूर्वक वर्णन किया है कि किस प्रकार ज्ञान और योग अभ्यास के माध्यम से जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य, भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने भगवान की महिमा का भी वर्णन किया है। महर्षि नारद ने इस दिव्य साहित्य का उपदेश सावर्णि मनु को प्रदान किया, ताकि वह भारतवर्ष के उन निवासियों को भगवान की भक्ति प्राप्त करने की शिक्षा दे सकें जो दृढ़ता से वर्णाश्रम धर्म के नियमों का पालन करते हैं। इस प्रकार, नारद मुनि भारतवर्ष के अन्य निवासियों के साथ मिलकर सदैव नर-नारायण की सेवा करते हैं और निम्नलिखित मंत्र का जप करते हैं।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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