वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
»
अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना
»
श्लोक 52
श्लोक
4.7.52
तस्मिन् ब्रह्मण्यद्वितीये केवले परमात्मनि ।
ब्रह्मरुद्रौ च भूतानि भेदेनाज्ञोऽनुपश्यति ॥ ५२ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
भगवान ने आगे कहा : जिसे उचित ज्ञान प्राप्त नहीं है, वह ब्रह्मा और शिव जैसे देवताओं को स्वतंत्र मानता है या वह यह भी सोचता है कि जीव भी स्वतंत्र हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.