श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  4.7.45 
 
 
ब्राह्मणा ऊचु:
त्वं क्रतुस्त्वं हविस्त्वं हुताश: स्वयंत्वं हि मन्त्र: समिद्दर्भपात्राणि च ।
त्वं सदस्यर्त्विजो दम्पती देवताअग्निहोत्रं स्वधा सोम आज्यं पशु: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्राह्मणों ने कहा: हे भगवान, आप स्वयं यज्ञ हैं। आप ही घी की आहुति हैं, आप ही अग्नि हैं, आप ही वेद मंत्रों का उच्चारण हैं जिनसे यज्ञ करवाया जाता है। आप ही ईंधन हैं, आप ही ज्वाला हैं, आप ही कुशा हैं, और आप ही यज्ञ के पात्र हैं। आप ही यज्ञ करवाने वाले पुरोहित हैं, इंद्र आदि देवतागण भी आप ही हैं और यज्ञ में बलिदान होने वाला पशु भी आप ही हैं। यज्ञ में जो कुछ भी चढ़ाया जाता है, वह आप हैं या आपकी ही शक्ति है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.