ग्निदेव ने कहा: हे नाथ, मैं तुम्हें सादर नमन करता हूँ, क्योंकि तुम्हारी ही कृपा से मैं प्रखर अग्नि की तरह तेजस्वी हूँ और यज्ञ में दी गई घी मिश्रित आहुतियाँ स्वीकार करता हूँ। यजुर्वेद में वर्णित पाँच तरह की आहुतियाँ तुम्हारी विभिन्न शक्तियाँ हैं और तुम्हारी पूजा पाँच तरह के वैदिक मंत्रों से की जाती है। यज्ञ का अर्थ ही तुम अर्थात् परम भगवान् है।