हम उस परम परमेस्वर को नमस्कार करते हैं, जिन्होंने भौतिक जगत में जीवों की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के लिए विभिन्न प्रकार के प्रपंच रचकर उनकी रचना की है। उनका स्वरूप अनादि, अनन्त और अपरिवर्तनीय है। वे स्वयं प्रकृति के गुणों से प्रभावित नहीं होते हैं और माया के भ्रम में नहीं पड़ते।