श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  4.7.39 
 
 
जगदुद्भवस्थितिलयेषु दैवतो
बहुभिद्यमानगुणयात्ममायया ।
रचितात्मभेदमतये स्वसंस्थया
विनिवर्तितभ्रमगुणात्मने नम: ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  हम उस परम परमेस्वर को नमस्कार करते हैं, जिन्होंने भौतिक जगत में जीवों की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के लिए विभिन्न प्रकार के प्रपंच रचकर उनकी रचना की है। उनका स्वरूप अनादि, अनन्त और अपरिवर्तनीय है। वे स्वयं प्रकृति के गुणों से प्रभावित नहीं होते हैं और माया के भ्रम में नहीं पड़ते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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