श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  4.7.32 
 
 
इन्द्र उवाच
इदमप्यच्युत विश्वभावनं
वपुरानन्दकरं मनोद‍ृशाम् ।
सुरविद्विट्‌क्षपणैरुदायुधै
र्भुजदण्डैरुपपन्नमष्टभि: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा इंद्र बोलेः हे स्वामिन्, प्रत्येक हाथ में आयुध धारण किए हुए आपका यह आठ भुजाओं वाला दिव्य रूप पूरे संसार के कल्याण के लिए प्रकट होता है और मन और आँखों को बेहद आनंदित करने वाला है। आप इस रूप में अपने भक्तों से ईर्ष्या करने वाले राक्षसों को दंड देने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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