श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  4.7.27 
 
 
ऋत्विज ऊचु:
तत्त्वं न ते वयमनञ्जन रुद्रशापात्
कर्मण्यवग्रहधियो भगवन्विदाम: ।
धर्मोपलक्षणमिदं त्रिवृदध्वराख्यं
ज्ञातं यदर्थमधिदैवमदो व्यवस्था: ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  पुरोहितों ने भगवान् से विनती करते हुए कहा—हे भगवन्, आप भौतिक कलुष से परे हैं। भगवान शिव के अनुचरों द्वारा अभिशप्त होने के कारण हम कामनाभरित कर्मों में लिप्त हैं, इसलिए हम अधोपतित हो गए हैं और आपसे अनभिज्ञ हो गए हैं। इसके उलट, हम यज्ञ नाम की आड़ में वेदत्रयी के आदेशों को निभाते रहते हैं। हमें मालूम है कि आपने देवताओं को उनके-उनके हिस्से बाँट दिए हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.