तदा स्वप्रभया तेषां द्योतयन्त्या दिशो दश ।
मुष्णंस्तेज उपानीतस्तार्क्ष्येण स्तोत्रवाजिना ॥ १९ ॥
अनुवाद
भगवान नारायण, स्तोत्र अर्थात् गरुड़ के विशाल पंखों पर विराजित थे। जैसे ही प्रभु प्रकट हुए, सारी दिशाएँ जगमगा उठीं। साथ ही, उनकी उपस्थिति से ब्रह्मा और अन्य मौजूद लोगों की कांति कम होती गई।