श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.20.7 
 
 
एक: शुद्ध: स्वयंज्योतिर्निर्गुणोऽसौ गुणाश्रय: ।
सर्वगोऽनावृत: साक्षी निरात्मात्मात्मन: पर: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  आत्मा एक, शुद्ध, भौतिक-रहित और स्वयं प्रकाशित है। सभी अच्छे गुणों का भंडार और सर्वव्यापी है। आत्मा किसी भौतिक आवरण से रहित है और सभी गतिविधियों का साक्षी है। यह अन्य जीवों से सर्वथा भिन्न है और सभी देहधारियों से परे है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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