श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति » अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य » श्लोक 6 |
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| | श्लोक 4.20.6  | असंसक्त: शरीरेऽस्मिन्नमुनोत्पादिते गृहे ।
अपत्ये द्रविणे वापि क: कुर्यान्ममतां बुध: ॥ ६ ॥ | | | अनुवाद | जो व्यक्ति देह के मोह में बिल्कुल लिप्त नहीं है, क्या ऐसा ज्ञानी और बुद्धिमान व्यक्ति घर, संतान, धन-दौलत और ऐसी ही अन्य शारीरिक बातों में देह के मोह में लिप्त होकर कष्ट पा सकता है? | | जो व्यक्ति देह के मोह में बिल्कुल लिप्त नहीं है, क्या ऐसा ज्ञानी और बुद्धिमान व्यक्ति घर, संतान, धन-दौलत और ऐसी ही अन्य शारीरिक बातों में देह के मोह में लिप्त होकर कष्ट पा सकता है? |
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