श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  4.20.38 
 
 
अद‍ृष्टाय नमस्कृत्य नृप: सन्दर्शितात्मने ।
अव्यक्ताय च देवानां देवाय स्वपुरं ययौ ॥ ३८ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् राजा पृथु ने उन भगवान् को नमस्कार किया जो समस्त देवों के परम स्वामी हैं। हालाँकि वे भौतिक दृष्टि से दिखाई नहीं देते, फिर भी उन्होंने स्वयं को महाराजा पृथु को दिखाया। भगवान् को नमन करने के बाद राजा अपने घर वापस चले गए।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध चार के अंतर्गत बीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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