श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  4.20.34 
 
 
मैत्रेय उवाच
इति वैन्यस्य राजर्षे: प्रतिनन्द्यार्थवद्वच: ।
पूजितोऽनुगृहीत्वैनं गन्तुं चक्रेऽच्युतो मतिम् ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  महान ऋषि मैत्रेय ने विदुर से कहा कि भगवान ने महाराज पृथु द्वारा की गई सार्थक प्रार्थना की बहुत प्रशंसा की। इसलिए, राजा द्वारा उचित रूप से पूजे जाने के बाद, भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और वापस जाने का निर्णय लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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