श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  4.20.33 
 
 
तत्त्वं कुरु मयादिष्टमप्रमत्त: प्रजापते ।
मदादेशकरो लोक: सर्वत्राप्नोति शोभनम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रजा के रक्षक राजन! अब से मेरी आज्ञा का पालन करने में सावधानी रखना और किसी भी तरह से बहकावे में मत आना। जो भी श्रद्धा से इस प्रकार मेरी आज्ञा का पालन करता है उसका सर्वत्र मंगल होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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