श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति » अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य » श्लोक 3 |
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| | श्लोक 4.20.3  | सुधिय: साधवो लोके नरदेव नरोत्तमा: ।
नाभिद्रुह्यन्ति भूतेभ्यो यर्हि नात्मा कलेवरम् ॥ ३ ॥ | | | अनुवाद | हे राजन, जो पुरुष अत्यधिक बुद्धिमान और दूसरों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहता है, वह मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। एक सिद्ध व्यक्ति कभी दूसरों से वैर-भाव नहीं रखता। जो लोग बुद्धिमान होते हैं, वे भली-भाँति जानते हैं कि यह भौतिक शरीर आत्मा से अलग है। | | हे राजन, जो पुरुष अत्यधिक बुद्धिमान और दूसरों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहता है, वह मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। एक सिद्ध व्यक्ति कभी दूसरों से वैर-भाव नहीं रखता। जो लोग बुद्धिमान होते हैं, वे भली-भाँति जानते हैं कि यह भौतिक शरीर आत्मा से अलग है। |
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