श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  4.20.19 
भगवानथ विश्वात्मा पृथुनोपहृतार्हण: ।
समुज्जिहानया भक्त्या गृहीतचरणाम्बुज: ॥ १९ ॥
 
 
अनुवाद
भगवान् ने राजा पृथु पर अत्यंत कृपा की थी, राजा पृथु ने भी भगवान् के चरण-कमलों की प्रभूत पूजा की। साथ ही, भगवान् के चरण-कमलों की आराधना करते हुए राजा पृथु का भक्ति में आनंद क्रमश: बढ़ता गया।
 
भगवान् ने राजा पृथु पर अत्यंत कृपा की थी, राजा पृथु ने भी भगवान् के चरण-कमलों की प्रभूत पूजा की। साथ ही, भगवान् के चरण-कमलों की आराधना करते हुए राजा पृथु का भक्ति में आनंद क्रमश: बढ़ता गया।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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