श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति » अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य » श्लोक 13 |
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| | श्लोक 4.20.13  | सम: समानोत्तममध्यमाधम:
सुखे च दु:खे च जितेन्द्रियाशय: ।
मयोपक्लृप्ताखिललोकसंयुतो
विधत्स्व वीराखिललोकरक्षणम् ॥ १३ ॥ | | | अनुवाद | हे वीर राजन! स्वयं को सदैव संतुलित रखते हुए अपने से श्रेष्ठ, मध्यम और निम्न स्तर के व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करें। क्षणिक सुख या दुख से विचलित न हों। अपने मन और इंद्रियों पर पूर्ण संयम रखें। मेरी व्यवस्था से आप जिस भी परिस्थिति में हों, उस दिव्य स्थिति में रहकर राजा का कर्तव्य निभाएं, क्योंकि आपका एकमात्र कर्तव्य अपने राज्य के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना है। | | हे वीर राजन! स्वयं को सदैव संतुलित रखते हुए अपने से श्रेष्ठ, मध्यम और निम्न स्तर के व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करें। क्षणिक सुख या दुख से विचलित न हों। अपने मन और इंद्रियों पर पूर्ण संयम रखें। मेरी व्यवस्था से आप जिस भी परिस्थिति में हों, उस दिव्य स्थिति में रहकर राजा का कर्तव्य निभाएं, क्योंकि आपका एकमात्र कर्तव्य अपने राज्य के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना है। |
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