श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  4.20.10 
परित्यक्तगुण: सम्यग्दर्शनो विशदाशय: ।
शान्तिं मे समवस्थानं ब्रह्म कैवल्यमश्नुते ॥ १० ॥
 
 
अनुवाद
जब हृदय समस्त भौतिक कल्मषों से मुक्त हो जाता है, तो भक्त का मन और अधिक खुला और स्पष्ट हो जाता है। वह सभी वस्तुओं को समान रूप से देख पाता है। जीवन के इस चरण में शांति प्राप्त होती है और वह मेरे समान पद के सच्चिदानंद-विग्रह रुप में स्थित हो जाता है।
 
जब हृदय समस्त भौतिक कल्मषों से मुक्त हो जाता है, तो भक्त का मन और अधिक खुला और स्पष्ट हो जाता है। वह सभी वस्तुओं को समान रूप से देख पाता है। जीवन के इस चरण में शांति प्राप्त होती है और वह मेरे समान पद के सच्चिदानंद-विग्रह रुप में स्थित हो जाता है।
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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