श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 20: महाराज पृथु के यज्ञस्थल में भगवान् विष्णु का प्राकट्य  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.20.1 
मैत्रेय उवाच
भगवानपि वैकुण्ठ: साकं मघवता विभु: ।
यज्ञैर्यज्ञपतिस्तुष्टो यज्ञभुक्तमभाषत ॥ १॥
 
 
अनुवाद
महान ऋषि मैत्रेय ने आगे कहा: हे विदुर, महाराज पृथु द्वारा निन्यानवे अश्वमेध यज्ञों के सम्पन्न किये जाने से भगवान् विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और वे यज्ञस्थल में प्रकट हुए। उनके साथ राजा इन्द्र भी था। तब भगवान् विष्णु ने कहना प्रारम्भ किया।
 
महान ऋषि मैत्रेय ने आगे कहा: हे विदुर, महाराज पृथु द्वारा निन्यानवे अश्वमेध यज्ञों के सम्पन्न किये जाने से भगवान् विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और वे यज्ञस्थल में प्रकट हुए। उनके साथ राजा इन्द्र भी था। तब भगवान् विष्णु ने कहना प्रारम्भ किया।
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.