श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.13.7 
 
 
स जन्मनोपशान्तात्मा नि:सङ्ग: समदर्शन: ।
ददर्श लोके विततमात्मानं लोकमात्मनि ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  उत्कल जन्म से ही पूरी तरह से संतुष्ट और दुनिया से तटस्थ था। वह सम-भाव वाला था, क्योंकि वह प्रत्येक वस्तु को परम आत्मा में और प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में परम आत्मा को स्थित देख सकता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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