श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  4.13.40 
 
 
स शरासनमुद्यम्य मृगयुर्वनगोचर: ।
हन्त्यसाधुर्मृगान् दीनान् वेनोऽसावित्यरौज्जन: ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  वह दुष्ट बालक धनुष-बाण चढ़ाकर जंगल में जाता और मासूम हिरणों को बिना वजह मारता था। जैसे ही वह आता, सभी लोग चिल्लाते, “आ गया क्रूर वेन! आ गया क्रूर वेन!”
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.