वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
»
अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन
»
श्लोक 37
श्लोक
4.13.37
स विप्रानुमतो राजा गृहीत्वाञ्जलिनौदनम् ।
अवघ्राय मुदा युक्त: प्रादात्पत्न्या उदारधी: ॥ ३७ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
राजा बहुत ही उदार थे। उन्होंने पुरोहितों की अनुमति लेकर खीर को अपनी हथेलियों में लिया और उसे सूँघ कर अपनी पत्नी को दे दिया।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.