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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन
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श्लोक 33
श्लोक
4.13.33
तथा स्वभागधेयानि ग्रहीष्यन्ति दिवौकस: ।
यद्यज्ञपुरुष: साक्षादपत्याय हरिर्वृत: ॥ ३३ ॥
अनुवाद
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जब समस्त यज्ञों के भोक्ता श्री हरि को पुत्र की कामना पूरी करने के लिए बुलाया जाएगा, तो सभी देवी-देवता उनके साथ आएंगे और यज्ञ में अपना-अपना भाग लेंगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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