न विदामेह देवानां हेलनं वयमण्वपि ।
यन्न गृह्णन्ति भागान् स्वान् ये देवा: कर्मसाक्षिण: ॥ २८ ॥
अनुवाद
हे राजन, हमें ऐसा कोई कारण नज़र नहीं आता जिससे देवतागण अपने को किसी तरह से अपमानित या उपेक्षित समझ सकें, परंतु फिर भी यज्ञ के साक्षी देवता अपना भाग नहीं ग्रहण कर रहे हैं। यह बात हमारी समझ से परे है कि ऐसा क्यों हो रहा है?