श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  4.13.26 
 
 
तमूचुर्विस्मितास्तत्र यजमानमथर्त्विज: ।
हवींषि हूयमानानि न ते गृह्णन्ति देवता: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  तब यज्ञ में लगे पुरोहितोंने राजा अंग से कहा: हे राजा, हम यज्ञ में विधिवत शुद्ध घी की आहुति दे रहे हैं, लेकिन हमारे सारे प्रयत्नों के बावजूद देवता उसे स्वीकार नहीं कर रहे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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