श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 15-16
 
 
श्लोक  4.13.15-16 
 
 
स चक्षु: सुतमाकूत्यां पत्‍न्यां मनुमवाप ह ।
मनोरसूत महिषी विरजान्नड्‌वला सुतान् ॥ १५ ॥
पुरुं कुत्सं त्रितं द्युम्नं सत्यवन्तमृतं व्रतम् ।
अग्निष्टोममतीरात्रं प्रद्युम्नं शिबिमुल्मुकम् ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  चाक्षुष मनु की पत्नी नड्वला ने निम्नलिखित निर्दोष पुत्रों को जन्म दिया: पुरु, कुत्स, त्रित, द्युम्न, सत्यवान्, ऋत, व्रत, अग्निष्टोम्, अतिरात्र, प्रद्युम्न, शिबि और उल्मुक। ये सभी पुत्र दोषरहित थे और अपने-अपने क्षेत्रों में अत्यंत प्रतिभाशाली थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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