श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 13: ध्रुव महाराज के वंशजों का वर्णन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.13.1 
 
 
सूत उवाच
निशम्य कौषारविणोपवर्णितंध्रुवस्य वैकुण्ठपदाधिरोहणम् ।
प्ररूढभावो भगवत्यधोक्षजेप्रष्टुं पुनस्तं विदुर: प्रचक्रमे ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  सूत गोस्वामी ने शौनक इत्यादि ऋषियों से आगे कहा : मैत्रेय ऋषि के ध्रुव महाराज के द्वारा भगवान विष्णुधाम में जाने का वर्णन करने पर विदुर के अंदर भक्ति का भाव बहुत प्रबल हो गया और उन्होंने मैत्रेय ऋषि से इस प्रकार प्रश्न किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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