श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  4.12.52 
 
 
इदं मया तेऽभिहितं कुरूद्वहध्रुवस्य विख्यातविशुद्धकर्मण: ।
हित्वार्भक: क्रीडनकानि मातु-र्गृहं च विष्णुं शरणं यो जगाम ॥ ५२ ॥
 
अनुवाद
 
  ध्रुव महाराज के दिव्य कार्य पूर्णतः शुद्ध और सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। बचपन में ही उन्होंने सभी खिलौनों और खेल की वस्तुओं को त्याग दिया तथा अपनी माता के संरक्षण को भी छोड़कर भगवान विष्णु की शरण ली। हे विदुर! मै इसलिए इस कथा को समाप्त करता हूँ, क्योंकि मैंने इसका पूरा विवरण तुमसे कहा है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध चार के अंतर्गत बारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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