श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  4.12.51 
 
 
ज्ञानमज्ञाततत्त्वाय यो दद्यात्सत्पथेऽमृतम् ।
कृपालोर्दीननाथस्य देवास्तस्यानुगृह्णते ॥ ५१ ॥
 
अनुवाद
 
  ध्रुव महाराज का जीवन वृत्तांत अमरता प्राप्त करने का सर्वोच्च ज्ञान है। जो लोग परम सत्य से परिचित नहीं हैं, उन्हें इस ज्ञान से सच्चाई के मार्ग का पता चल सकता है। जो लोग ईश्वरीय दयालुता के कारण गरीब जीवों के रखवाले बनने की जिम्मेदारी लेते हैं, उन्हें देवताओं का ध्यान और आशीर्वाद मिलता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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