श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  4.12.48 
 
 
प्रयत: कीर्तयेत्प्रात: समवाये द्विजन्मनाम् ।
सायं च पुण्यश्लोकस्य ध्रुवस्य चरितं महत् ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  संत मैत्रेय जी ने सिफारिश की: दिन ढलने और सूरज उगने, दोनो काल में मनुष्य को अत्यंत ध्यानपूर्वक, ब्राह्मणों और अन्य द्विजों की संगति में बैठकर, ध्रुव महाराज का गुणगान और उनके कार्यों पर चर्चा करनी चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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