श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  4.12.35 
 
 
त्रिलोकीं देवयानेन सोऽतिव्रज्य मुनीनपि ।
परस्ताद्यद् ध्रुवगतिर्विष्णो: पदमथाभ्यगात् ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार ध्रुव महाराज ने सप्तर्षियों के सात लोकों से परे की यात्रा की। उन्होंने उस लोकातीत स्थान को प्राप्त किया जहाँ भगवान विष्णु का वास है और वहाँ उन्होंने अविचल दिव्य पद प्राप्त किया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.