श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  4.12.33 
 
 
इति व्यवसितं तस्य व्यवसाय सुरोत्तमौ ।
दर्शयामासतुर्देवीं पुरो यानेन गच्छतीम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  वैकुण्ठलोक के महान् पार्षद नंद और सुनंद जी ध्रुव महाराज के मन की बात समझ गए। इसलिए उन्होंने उसे दिखाया कि उनकी माँ सुनीति दूसरे यान में आगे बढ़ रही है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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