श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 12: ध्रुव महाराज का भगवान् के पास जाना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  4.12.22 
 
 
तं कृष्णपादाभिनिविष्टचेतसं
बद्धाञ्जलिं प्रश्रयनम्रकन्धरम् ।
सुनन्दनन्दावुपसृत्य सस्मितं
प्रत्यूचतु: पुष्करनाभसम्मतौ ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  ध्रुव महाराज भगवान श्रीकृष्ण के चरण-कमलन के चिंतन में सदा डूबे रहते थे। उनके हृदय में कृष्ण का भाव भरा हुआ था। जब परमेश्वर के दो निजी दास, जिनके नाम सुनंद व नंद थे, हर्षति ध्वनि सहित मुस्कुराते हुए ध्रुव महाराज के पास आए तो ध्रुव महाराज हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक सिर झुकाकर खड़े हो गए। तब उन्होंने ध्रुव महाराज से इस प्रकार बात की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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