ध्रुव महाराज भगवान श्रीकृष्ण के चरण-कमलन के चिंतन में सदा डूबे रहते थे। उनके हृदय में कृष्ण का भाव भरा हुआ था। जब परमेश्वर के दो निजी दास, जिनके नाम सुनंद व नंद थे, हर्षति ध्वनि सहित मुस्कुराते हुए ध्रुव महाराज के पास आए तो ध्रुव महाराज हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक सिर झुकाकर खड़े हो गए। तब उन्होंने ध्रुव महाराज से इस प्रकार बात की।