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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 9: सृजन-शक्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा स्तुति
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श्लोक 41
श्लोक
3.9.41
पूर्तेन तपसा यज्ञैर्दानैर्योगसमाधिना ।
राद्धं नि:श्रेयसं पुंसां मत्प्रीतिस्तत्त्वविन्मतम् ॥ ४१ ॥
अनुवाद
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दक्ष अध्यात्मवादियों का मानना है कि परंपरागत सत्कर्म, तपस्या, यज्ञ, दान, योग कर्म, समाधि आदि का परम उद्देश्य मेरी कृपा प्राप्त करना है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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