श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 9: सृजन-शक्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा स्तुति  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  3.9.27-28 
 
 
अथाभिप्रेतमन्वीक्ष्य ब्रह्मणो मधुसूदन: ।
विषण्णचेतसं तेन कल्पव्यतिकराम्भसा ॥ २७ ॥
लोकसंस्थानविज्ञान आत्मन: परिखिद्यत: ।
तमाहागाधया वाचा कश्मलं शमयन्निव ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ने देखा कि ब्रह्मा इस बात को लेकर अत्यंत चिंतित थे कि वे विभिन्न लोकों की योजना कैसे बनाएँगे और उनका निर्माण किस प्रकार करेंगे, तथा प्रलयकारी जल को देखकर बहुत दुखी थे। भगवान ने ब्रह्मा के मन की पीड़ा को समझ लिया अत: संसार के मोह को नष्ट कर देने वाले गंभीर और विचारशील शब्दों में कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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