पुंसामतो विविधकर्मभिरध्वराद्यै-
र्दानेन चोग्रतपसा परिचर्यया च ।
आराधनं भगवतस्तव सत्क्रियार्थो
धर्मोऽर्पित: कर्हिचिद्म्रियते न यत्र ॥ १३ ॥
अनुवाद
लेकिन वेदिक अनुष्ठान, दान, कठोर तपस्या तथा दिव्य सेवा जैसे पुण्य कार्य भी लाभप्रद होते हैं, जो लोग सकाम फलों को आपको अर्पित करके आपकी पूजा करने तथा आपको तुष्ट करने के उद्देश्य से करते हैं। धर्म के ऐसे कार्य व्यर्थ नहीं जाते।