अह्न्यापृतार्तकरणा निशि नि:शयाना ।
नानामनोरथधिया क्षणभग्ननिद्रा: ।
दैवाहतार्थरचना ऋषयोऽपि देव
युष्मत्प्रसङ्गविमुखा इह संसरन्ति ॥ १० ॥
अनुवाद
ऐसे अभक्तगण अपनी इन्द्रियों को अत्यन्त कष्टप्रद तथा विस्तृत कार्य में लगाते हैं और रात में उनिद्रता से परेशान रहते हैं क्योंकि उनकी बुद्धि विविध मानसिक चिन्ताओं के चलते उनकी नींद में खलल डालती रहती है। अतिमानवीय शक्ति के कारण वे अपनी विविध योजनाओं में हताश हो जाते हैं। यहाँ तक कि महान ऋषि-मुनि भी, यदि वे आपके दिव्य कथनों के प्रतिकूल आचरण करते हैं, तो उन्हें इस भौतिक संसार में ही भटकना पड़ता है।