ब्रह्मोवाच
ज्ञातोऽसि मेऽद्य सुचिरान्ननु देहभाजां
न ज्ञायते भगवतो गतिरित्यवद्यम् ।
नान्यत्त्वदस्ति भगवन्नपि तन्न शुद्धं
मायागुणव्यतिकराद्यदुरुर्विभासि ॥ १ ॥
अनुवाद
ब्रह्माजी ने कहा: हे प्रभु, आज कई सालों की तपस्या के बाद मुझे आपका ज्ञान हुआ है। देहधारी जीव कितने दुर्भाग्यशाली हैं कि वे आपके स्वरूप को जानने में अक्षम हैं। हे स्वामी, आप ही एकमात्र जानने योग्य तत्व हैं, क्योंकि आपसे बड़ा कोई नहीं है। यदि कोई वस्तु आपसे श्रेष्ठ प्रतीत होती भी है, तो वह परम पूर्ण नहीं है। आप पदार्थ की सृजन शक्ति का प्रदर्शन करके ब्रह्म रूप में विराजमान हैं।